रोज़ा (Roza) क्या है तथा क्यों रखा जाता है? - Iftaar और Sehri क्या चीज़ें है?

स्वागत है दोस्तों आज के इस अमेजिंग आर्टिकल में जहां पर हम आज जानने वाले हैं रोज़ा क्या होता है तथा कैसे एवं क्यों रखते हैं? साथ ही बात करेंगे Iftaar और shehri के बारे में की ये क्या चीज़ें हैं और इन दोनो में क्या फर्क है तो चलिए शुरू करते हैं.

दरअसल दोस्तों इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से रमज़ान 9 वा महीना होता है, इस्लामिक कैलेंडर आम कैलेंडर से थोड़ा अलग होता है क्युकी इसमें हमारे महीने के दिन सूरज नहीं बल्कि चांद के हिसाब से गिना जाता है. जैसे चांद को निकालकर पूरा गोलाकार होने में ठीक पूरे 15 दिन लगते हैं और गोलाकर से वापस घटते घटते खतम हो जाने में 15 दिन इस तरह इस्लाम का एक महीना पूरा होता है।

Roza kya hai?

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रमज़ान मुबारक क्या है? ( What is Ramadan Mubarak?)

दोस्तो अकसर आपने मुसलमान दोस्तों के मुंह से या टीवी या मोबाइल पर ramadan Mubarak के बारे में सुना होगा लेकिन क्या आप जानते हैं की ये है क्या? जैसा की मैने आप लोगों को पहले ही बता दिया कि ये इस्लाम का नौवा महीना है जिसे माहे रमादान भी कहा जाता है. इस महीने में लोग दिन में रोज़ा रखते हैं और शाम को 20 रिकात की एक खास नमाज पढ़ते हैं जिसे तरावीह कहा जाता है. 
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तरावीह बहोत ही खास नमाज है जिसे पढ़ने में करीब आधे घंटे से 2 घंटे तक का वक्त लग सकता है. ये बस इसी एक महीने के लिए होता है फिर जिस दिन ईद (Eid) का चांद नजर आने के एक दिन पहले आखरी बार पढ़ा जाता है. इस शाम इफ्तार करने के बाद लोग बड़ी ही ख्वाहिश के साथ eid के चांद का इंतजार करते हुए आसमान की तरफ देखते हैं क्युकी इसी चांद के साथ रमजान का पाक महीना खत्म हो जात है और अगले दिन Eid मनाई जाती है.

पूरे महीने इतने मुश्किल से रोज़े रखने के बाद रातों को तरावीह पढ़ने के बाद भी इस महीने के खत्म होने पर सबके आंखों में आसूं होता है क्युकी वो चाहते हैं की ये पाक और इतना अच्छा महीना कभी उनसे दूर न हो लेकिन eid के चांद के साथ सबके आंखों में आंसुओ को लेकर रमादान को अलविदा कह दिया जाता है.

केवल इतना ही नहीं इस महीने में हर मुसलमान भाई और बहन को अपना और अपने कमाई तथा कमाई का जरिया कैसे फैक्ट्री, गाड़ी, कोई जानवर या कोई ऐसी चीज जिससे आप पैसे कटे हो उसका एक खास किस्म का टैक्स निकालना होता है जिसे फितरा, जकात और सदका कहते हैं. ये बिलकुल आय कर (income tax) की तरह होता है जिसे हर साल निकालना ही होता है जिसका एक खास माप होता है की कितने रुपयों पर कितना जकात.

फित्रा (fitra)

फिरता इंसान का निकला जाता है जैसे घर के हर छोटे बड़े इंसान का टैक्स निकालना होगा क्युकी आपको उपर वाले ने पूरे साल अच्छा खासा तंदुरुस्त रखा ताकि आप कमा सके खा सकें खुद रह सकें, प्रत्येक इंसान का फित्रा निकालना अनिवार्य है वरना Eid की नमाज नही होती. गरीब लोगों को छोड़कर जिनकी आय इतनी कम है की वो फित्रा नही दे सकते, इन पैसों को किनको दिया जाता है आगे बताऊंगा.

जकात (jakat)

जकात एक तरह का इनकम टैक्स है जो आपके रेगुलर इनकम पर नहीं बल्कि साल भर में कमाकर आपने जो धन रखा हो या आपके पास घर में सोना चांदी, बिजनेस का गेहूं चावल आदि उतने रकम से उपर का हो जितना नियम के हिसाब से है तो आपको हिसाब लगाकर उस पूरे का जकात निकालना होगा, इससे नीचे आय यानी गरीब लोगों पर जकात फर्ज नहीं है उनको नही देना होगा.

मान लिज्ये आपका जकात 9 रूपये है और आप 8 रूपये देकर सोचने की 1 रूपये बाद में दे दूंगा जी नही आपको रमजान के बाद eid की नमाज से पहले पहले वो 1 रुपया भी चुकाना होगा यदि वो भी रह गया तो आपका सारा दिया हुआ जकात का पैसा बर्बाद और आपकी सारी आमदनी हराम की हो जाएगी बिलकुल ब्लैक मनी यानी काले धन की तरह चाहे आपके जकात का रकम लाखों रुपए दिए हो और 1 रूपये नही दिया पूरा पैसा हराम का हो जाएगा.

सदका (sadka)

सदका भी बहोत ही खास किस्म की tax होती है जिसे निकालना तथा देना ही होता है, ये सदका उस जानवर या मशीन का होता है जिससे आप कमा रहे हो जो आपके कमाई का जरिया है और आप उसके मालिक हो जैसे गाय भैंस, बाइक, ट्रक, बाइक, मोबाइल (यदि आप मोबाइल से पैसे कमाते हो तो) आदि. 

Fitra, Jakat तथा Sadka हर मुसलमान को निकालना फर्ज है उसे इनके निकाले में से 1 भी पैसा कम नहीं होना चाहिए. अब बात आती है की ये पैसे कहां चुका होता है? देखिए दोस्तों ये इसका tax का भुगतान उपर वाले यानी की ईश्वर के लिए करना होता है जैसे ये पैसे या रकम आपको गरीब, फकीर, मिस्कीन, ऐसे लोग जिनके हाथ पैर नही हैं या आंखे नहीं हैं, पैरालाइज्ड हैं या इसी तरह की किसी फिजिकल डिफेक्ट की वजह से कमा नही पा रहें.

अगला यदि कोई गांव है जहां केवल गरीब परिवार रहती हो मुस्लिम या दूसरे धर्म क्युकी सभी ईश्वर के ही मानने वाले हैं अपने अपने तरीके से उस स्थान या गांव में डेवलपमेंट पर कोई काम कर देना जैसे पानी की व्यवस्था कर देना, कुवां खुदवा देना, हैंड पंप लगा देना आदि.

यदि कहीं कोई मस्जिद या मदरसा बन रहा हो जहां पे गरीब अनाथ बच्चे पढ़ाई लिखाई करते हों वहां पर दे देना, अनाथ आलय आदि जैसे जगहों पर दे देना. इन टैक्स को हर मुसलमान को हर साल निकालना ही होता है ये उनके कमाई की उस धूल की तरह माना जाता है जिसे यदि नही निकाला तो पूरी कमाई बर्बाद फिर आप ना उन पैसों से कुछ खा सकते हो न अपने परिवार वालों को कुछ खिला सकते हो.

रोज़ा क्या है? (What is Roza in hindi?)

रमज़ान मुसलमानों के लिए सारे महीनों से ज्यादा पाक यानी पवित्र और रहमत वाला महीना माना जात है. इस महीने में पूरी दुनिया के सारे मुसलमान पूरे महीने पहली चांद के दिखने से चांद के बड़े होकर खत्म होकर नए चांद दिखने तक सुबह भोर से पहले से लेकर शाम ढलने तक कुछ भी नहीं खाते पीते इसे ही रोज़ा कहते हैं।

लेकिन लोगों में अक्सर ये कन्फ्यूजन ई है की बस खाना पीना बंद कर देने का नाम रोज़ा है, लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नही है. इसे रखना बिल्कुल भी कोई आसान काम नही है और बस भूखे रहने का नाम रोज़ा नहीं है।

Roza कैसे रखते हैं? (How do you keep roza?)

दोस्तों इबादत का मतलब होता है उपर वाले के लिए प्रेयर करना. रोज़ा रखना असल में एक इबादत है इसे क्यो रखा जाता है इसके बारे में हमलोग आगे बात करेंगे लेकिन पहले आइए जान लेते हैं को असल में रोज़ा होती है या फिर रखते कैसे हैं।

1. रोज़ा रखने के लिए ये सबसे जरूरी है की आपको रात के एक खास वक्त पर उठकर कुछ खाना या पीना ही होगा.

2. सुबह के अजान लगने के बाद खाने पीने का वक्त खत्म अब आप कुछ खा पी नही सकते पूरे दिन.

3. खाने के बाद आपको रोज़ा रखने की नियत करनी होगी साफ दिल से आप चाहे तो अपने दिल ही दिल में.

4. दिन भर रोज़े के दौरान आप पानी की बूंद तक अपने मुंह में नही डाल सकते ना ही कोई खाना, फल या फुल कुछ भी.

5. आपका जी खाने के लिए ललचाना नहीं चाहिए आपको अपने मस्तिष्क पर पूरी तरह से काबू रखना होगा.

6. आप किसी को गाली गलोच नही कर सकते यदि रोजे की हालत में आपने किसी को कुछ बुरा भला कहा, लड़ाई की या गाली दी, उसके मुंह पर पीठ पीछे या किसी के सामने तो रोज़ा खराब हो जाएगी.

7. मन में कोई गंदा खयाल नहीं आना चाहिए खासकर आप लड़के हो तो लड़कियों और लड़की हो तो लड़कों के लिए.

8. दोस्तों या किसी भी और इंसान के साथ मिलकर किसी तीसरे बंदे की बुराई या चुगली नहीं करनी होगी.

9. बिना किसी क्रेडिट के बिना स्वार्थ के दूसरे लोगों की मदद करनी होगी चाहे वो कोई भी ही यदि आपसे मदद मांगे और आप कर सकते हो तो आपको करना होगा. हां इस बात का ध्यान रखें कि उससे आपके रोजे को कोई असर न हो जैसे खाना पीना या अन्य चीजें.

10. सबके साथ प्यार से और खुश मिजाजी के साथ रहें.

11. शाम को रोज़ा खोलने के करीब 15 या 5 मिनट पहले फर्श पर या कुछ बिछाकर बैठ जाएं और दुआ यानी उपर वाले से दुआ करें की यदि उनसे उसदीन रोज़ा के दौरान कोई गलती हुई हो तो माफ करदे. फिर अपने दिल की मुराद यानी खहीश मांगे.

12. शाम के मगरिब की अजान के साथ दुआ में उपर वाले का नाम लेकर फलों के साथ अपना खाना शुरू कीजए.

शाम के वक्त रोज़ा खोलने से पहले फर्श पर बैठकर पहले दुआ मांगने यानी की प्रार्थना करने को माना जाता है की ईश्वर उस वक्त रोने रखने वालो के सबसे करीब होता है और उनकी दिन की हर अच्छी खहिश पूरी करता है. क्युकी वो देखता है की उसका बंदा या बंदी उसके लिए खाना सामने रखा होने के बावजूद उसके इशारे के बिना खाना शुरू नही कर रहा।

यदि यहां बताए हुए प्वाइंट को आप नही कर पाए तो आपका रोज़ा मात्र दिन भर भूका रहना बन जाएगा जिसका कोई फायदा नहीं होगा आपको खुदपर पूरा कंट्रोल रखना सीखना होगा.
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सेहरी क्या होती है? ( What is Shehri?)

रोज़ा रखने के लिए आधी रात को रात और सुबह के दरमियान जो वक्त होती है कुछ घंटो की उस टाइम पर उठकर कुछ खाना होता है फिर रोज़ा शुरू होती है उस खाने को ही शेहरी कहते हैं और उस रात और दिन के बीच वाले वक्त को सहर या सेहरी का वक्त कहते हैं.

सेहरी का खाना बिलकुल हल्का होना चाहिए, जैसे यदि आपके पास कुछ खाने को नहीं है तो सिर्फ एक ग्लास पानी भी चलेगा. मुहम्मद साहब (SA) अपने जमाने में केवल खजूर की गुठली और पानी खाकर रोज़ा रखते थे, ज्यादा खाना खा लेने से आपको दिन भर डकार आ सकती है या पेट खराब हो सकता है.

ज्यादा पानी पीने से जैसे 3 या 4 लीटर तो आपका पेट सुबह उठते ही खाली हो जाएगा और आप दिनभर रोजा नही रख पाओगे ऐसे हालातों से बचने के लिए आप लिमिट में रहकर ही खाया पिया कीजए.

Iftaar क्या है? ( What is Iftaar?)

Iftaar या iftaari एक ही चीज है, असल में शाम को रोज़ा खोलने के लिए जो पकवान बनाए जाते हैं उसे ही इफ्तार या इफ्तारी कहते हैं और जिस वक्त iftaari की जाती है उस वक्त को इफ्तार का वक्त कहते हैं.

यदि आपके पास इफ्तार करने के लिए कुछ न हो तो आप केवल एक ग्लास पानी से भी अपना रोज़ा खोल सकते हैं और यदि उसी वक्त कोई भी इंसान आपके घर आ गया चाहे वो आपका दोस्त, रिश्तेदार या फकीर कोई भी हो आपको उसे भी इफ्तार खिलाना होगा चाहे वो एक ग्लास पानी ही क्यों न हो और हो सके तो खुद ना खा कर भी उसे खिलाना होगा.

रोज़ा कोई आसान इबादत नही है इसे रखना इतना आसान नहीं है लेकिन आजके दौर में साइंस के चलन के ये पाया गया है की एक वक्त अगर दिन में कुछ खाया पिया ना जाए तो बहोत से बीमारियों से बचा जा सकता है यही कारण है की मेरे कई साथी आज भी कई सालों से दूसरे धर्मों के बावजूद मेरे साथ रोज़ा रखते हैं. 

रोज़ा इफतारी की दुआ | Roza Iftaar ki dua

Iftaari के पहले ऊपर वाले से दुआ मांगने के बाद खाना मुंह में लगाने के लिए एक दुआ पढ़ी जाती है उसके बाद ही पानी या खाने का निवाला मुंह में डालते हैं, वो दुआ है. 

"अल्लाहुम्मा लकसुंतो, वबिका आमंतो , वालाइका तवकल्तो, वाआला रिजकिका अफ्तरतो"

अर्थात् "ऐ अल्लाह (ईश्वर) ! मैंने तेरे लिए रोज़ा रखा और तुझ पर ईमान लाया !और तुझ पर भरोसा किया ! और तेरे दिए हुए से इफ़तार किया तो तू मुझ से इसको कुबूल फरमा !

उर्दू इस्लामिक महीनों के नाम | Islamic Months name in Hindi

दोस्तों चलिए जानते हैं इस्लामिक यानी उर्दू कैलेंडर के महीनों के नाम :-

1. Muharram مــُــحــرَّم
2. Safar صــَــفــَــر
3. Rabi’ Al-Awwal ربــيـــع الأول
4. Rabi’ Al-Akhir ربــيـــع الآخــِــر
5. Jumada Al-Oula جــُــمــَــادَى الأولــى
6. Jumada Al-Akhirah جــُــمــَــادى الآخــِــرَة
7. Rajab رَجــَــبْ
8. Sha’ban شــَــعــْـــبـــان
9. Ramadan رَمــَــضــَــان
10. Shawwal شــَـــوَّال
11. Dhu Al-Qi’dah ذو الــقــعــدة
12. Dhu Al-Hijjah ذو الــحــجــة

रोज़ा क्यों रखा जाता है? (why Roza is observed?)

रोज़ा 13 साल से लेकर हर लड़के और लड़की को रखनी फर्ज है लेकिन शर्त है की वो बीमार न हो, या कोई सफर पर न जा रहा हो या उस दिन उसे कोई इंजेक्शन न लेना हो इन सबके अलावा हर तंदुरुस्त मर्द औरत पर ये समान रूप से फर्ज है. अब सवाल के ये क्यों रखा जाता है तो इसकी शुरुआत सन् 2 हिजरी से हुई जब मुहम्मद साहब (SA) ने बताया तब से पूरी दुनिया के मुसलमान पर फर्ज हो गई. 

उनके हिसाब से इसके रखने के कई कारण है अब हर कारण के बारे में तो डिटेल में नहीं बता सकता कुछ एक के बारे में जान लेते हैं, की दुनिया का एक हिस्सा जो आज भी भुका, प्यासा रहता है, एक वक्त की रोटी भी बड़ी मुश्किल से जूता पता है रोज़ा रखने से कम से कम थोड़ा बहोत उनके दुख तकलीफ का अंदाजा लगा सके और उनके लिए दिल में असली मुहब्बत पैदा हो और उनकी मदद करें.

इस महीने में रोजे के दौरा अपने हाथ पाव, आंख मुन्हौर हर नाफ्स पर कंट्रोल करना होता है की कोई गलत काम न करे, पूरे महीने इस चीज को करने से हमारे अंदर की बुराई खत्म हो सके, दूसरों की इज्जत करने वाले बने अमीर गरीब बड़े छोटे सब में समानता देखी जा सके सबकी बराबर इज्जत करें. भूखे रहने से अपने पूर्वजों के उन भूले प्यारे रहकर हमारे लिए किए बलिदान को महसूस करे सकें उनके दर्द तालकीफ को याद कर सकीं. 

दूसरों के लिए मुहब्बत का भाव पैदा कर सकें इसीलिए रमजान के खत्म होने के बाद सारे धर्मों के लोगों के साथ मिलकर इसे मानने का हुक्म दिया गया है जिसे आपस मैं जो दूरियां है वो काम हो सके और ये सारी बाते आज की नही बल्कि आज से हजारों साल पहले करीब 2 हजार साल लगभक पहले आए मुहम्मद SA साहब ने सिखाई.

सबको रमादान मुबारक की ढेरों शुभकामनाएं, Happy Ramadan.

||जय हिंद||

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